
अवि जानती थी कि इस तरह से करने की वजह से आरिक्य गुस्से में आ जाएगा और उसकी ये आशंका बिल्कुल सही भी थी। आरिक्य सच में बहुत गुस्से में था। अवि को अच्छी तरह समझ थी कि एक भाई के लिए अपनी बहन को इस तरह मुसीबत में देखना कितनी बड़ी और तकलीफ़देह बात होती है। आरिक्य गुस्से में किसी भी हद तक जा सकता था, क्योंकि सच तो ये था कि अवि को पहले से पता था कि वो हमेशा उसे अपनी बहन ही मानता आया है। उसने पहले भी कई बार महसूस किया था कि जब उसकी बहन किसी परेशानी में रही, तब भी आरिक्य ने हर बार पूरी ईमानदारी से उसका साथ दिया था और उसकी मदद की थी। शायद उस वक्त भी, जब अवि सबसे बड़ी उलझन में फँस गई थी, अगर आरिक्य उसके पास मौजूद होता तो ज़रूर उसकी मदद करता। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था और अब वो बुरी तरह फँस चुकी थी, यहां पर सनक के हाथों में।
सनक ने जब उसकी कमर पर हाथ रखा तो अवि ने बेचैनी के साथ तुरंत उसे हटाते हुए कहा—





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